राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने देश के सभी डॉक्टर के लिए नए नियम बताए हैं जिसके तहत अब से डॉक्टर generic medicine प्रिस्क्रिप्शन में लिखेंगे और यह अनिवार्य कर दिया गया है।

नियम के अनुसार अगर कोई भी डॉक्टर Generic Medicine Prescription में लिखने से मना करता है या लिखकर नहीं देता तो उसे सस्पेंड किया जा सकता है उसके खिलाफ कार्यवाही हो सकती है तथा उसका लाइसेंस भी अस्थाई तौर पर बंद किया जा सकता है।
तो देश के सभी अस्पतालों के डॉक्टर को इन नियमों को मनना पड़ेगा क्योंकि यह अनिवार्य कर दिया गया है ऐसा करने से ग्राहकों को बहुत फायदा मिलेगा।
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ऐसा करने के पीछे नेशनल मेडिकल कमिश्नर का उद्देश्य है गरीब लोगों को भी सही दवाइयां उपलब्ध होना और इस नियम के तहत यह भी कहा गया है कि महंगी ब्रांडेड जेनेरिक दवाइयां लिखने के बजाय सस्ती दवाइयां लिखकर दी जानी चाहिए।
भारत में जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में काफी सस्ती हैं कुछ दवाइयां तो 80 परसेंट तक सस्ती होती हैं तो इसी को देखते हुए आम आदमी पर दवाइयों का बोझ ना पड़े, वह सही इलाज ले सके तथा दवाइयां बिना बहुत चिंता किए खरीद सके, अपनी हेल्थ को प्रायरिटी दे सके इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है।
हमारे देश में आम आदमी दवाइयां खरीदने में बहुत ज्यादा पैसा खर्च कर देता है जिसकी वजह से उसकी दैनिक लाइफस्टाइल भी प्रभावित होती है।
तो generic medicine priscrib करने से अब आम आदमी के खर्चे में जो वह दवाइयों पर करता था कमी आएगी तथा उन्हें गुणवत्ता वाली दवाई सस्ते में उपलब्ध हो पाएगी।
जेनेरिक दवा का मतलब क्या होता है? और यह कैसे अलग हैं?
generic medicine वो दवाएँ होती हैं जिनकी एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि वे ब्रांड नाम के जरिए नहीं बिकती हैं, बल्कि इसे उसी मौलिक नाम से बेचा जाता है जिस नाम से यह बनती है।
ये दवाएँ सस्ती होती हैं क्योंकि उनमें Scientific Research and Marketing के खर्च कम होते हैं।
उदाहरण: जेनेरिक दवाइयां जिस सॉल्ट से बनी होती है उसी के नाम से ही जानी जाती हैं जैसे कि बुखार की दवाई पेरासिटामोल जो किसी कंपनी से नहीं बल्कि पेरासिटामोल के नाम से ही बिकती है।
लेकिन यदि कोई ब्रांड पेरासिटामोल को अपने नाम से बेचें तो यह ब्रांडेड दवाई बन जाएगी जैसे कि क्रोसिन ब्रांड अपने ब्रांड के नाम से जो दवाइयां बेचता है वह ब्रांडेड दवाई है यह दवाइयां जेनेरिक दवाइयों की तुलना में बहुत महंगी होती है जिससे इन्हें ज्यादातर लोग Afford नहीं कर पाते।
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आदेश न मानने पर दंड का क्या प्रावधान है?
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के मुताबिक यदि डॉक्टर Generic Medicine लिखने से मना करता है या बार-बार आदेश का उल्लंघन करता है तो उसे दंड दिया जाएगा।
सजा के रूप में डॉक्टर का प्रेक्टिस करने का लाइसेंस सस्पेंड किया जा सकता है उसे काम से हटाया जा सकता है तथा उसके खिलाफ कार्यवाही भी हो सकती है।
अगर डॉक्टर किसी मरीज को निर्देशित नियमों के अनुसार पर्ची बनाकर नहीं देता है प्रिसप्शन में जेनेरिक दवाइयां नहीं लिखता है तथा एक स्पष्ट भाषा में दवाइयों को नहीं लिखता जिसे पढ़ जा सके तब भी डॉक्टर को सजा दी जाएगी।
तो नेशनल मेडिकल कमीशन के मुताबिक दवाइयों का नाम डॉक्टर को कैपिटल लेटर में लिखकर देना चाहिए उनकी handwriting सही होनी चाहिए ताकि दवाइयों के नाम को पढ़ा जा सके।
इसके लिए एनएमसी ने एक template भी जारी किया है जिसे डॉक्टर मरीज को नुस्खे लिखने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
Generic medicine के बारे में जागरूकता:
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने यह नियम जारी करते हुए यह भी कहा है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस मामले में जागरूक करना चाहिए।
जन औषधि केंद्रों, जेनेरिक फार्मेसी और मेडिकल दुकानों पर लोगों को इसके बारे में जानकारी देनी चाहिए ताकि वह जेनेरिक दवाइयां खरीदने के लिए प्रोत्साहित हों।
साथ ही स्कूल में भी छात्रों को जेनेरिक दवाइयों के बारे में शिक्षा दी जानी चाहिए इससे भी जेनेरिक दवाइयों का प्रचार बढ़ेगा इसके बारे में लोगों की नॉलेज बढ़ेगी और ऐसा होने पर देश में ज्यादातर लोग स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाएंगे कम खर्चे पर दवाई उपयोग कर पाएंगे।
निष्कर्ष:
तो दोस्तों नेशनल मेडिकल कमिशन का यह आदेश हमारे देश के लिए बहुत फायदा देने वाला नियम है इसके बारे में हमें लोगों को जागरूक करना चाहिए ताकि उन्हें भी दवाइयां सस्ते में और क्वालिटी के साथ मिल सके।
डॉक्टर उनके साथ धोखा ना करें क्योंकि यदि आम आदमी को इस नियम के बारे में पता नहीं होगा तो डॉक्टर उन्हें महंगी दवाइयां लिखकर दे सकता है और धोखाधड़ी करके अपना फायदा निकाल सकता है।
तो ज्यादातर लोगों तक यह जानकारी share करें अपने आसपास सभी को इस जानकारी के बारे में बताएं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस बारे में जागरूक बनें।