ग्लूकोस आपके खून में पाए जाने वाली मुख्य शुगर होती है यह शुगर भोजन के खाए जाने पर प्राप्त होती है यानी भोजन से मिलती है और आपके शरीर को इसी से ऊर्जा मिलती है जिसका उपयोग करके आप अपने दैनिक कार्यों को कर पाते हैं।
आपका शरीर ग्लूकोज या ब्लड शुगर से मिली हुई ऊर्जा का उपयोग करके शरीर की सभी कोशिकाओं तक यह ग्लूकोस पहुंचाता है लेकिन जब आपकी बॉडी में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है मतलब ब्लड शुगर जरूर से ज्यादा हो गया है तो आपको शुगर या मधुमेह की बीमारी है ऐसा माना जाता है।
शुगर और सिगरेट में क्या अंतर है?
अगर शुगर और डायबिटीज में अंतर की बात करें तो इनमें केवल इतना सा फर्क है शुगर आपके शरीर की जरूरत है लेकिन अगर आप ऐसा भोजन खा रहे हैं जिसमें शुगर अधिक मात्रा में है और आपकी बॉडी को जरूर से ज्यादा शुगर प्राप्त हो रही है तो ऐसे में डायबिटीज होने का खतरा रहता है यानी आपके शरीर में जरूरत से ज्यादा शुगर लेवल डायबिटीज कहलाती है।
डायबिटीज दो तरह की हो सकती है, टाइप 1 डायबिटीज और टाइप 2 डायबिटीज, एक टाइप 3 डायबिटीज भी होती है जो प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं में होती है लेकिन ज्यादातर cases में बच्चे की डिलीवरी होने के बाद यह खुद ठीक हो जाती है।
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टाइप 1 और टाइप 2 Diabetes में अंतर
डायबिटीज मुख्य रूप से दो तरह की होती है टाइप 1 और टाइप 2, टाइप 1 डायबिटीज की शुरुआती स्टेज होती है जिसे कंट्रोल किया जा सकता है वही type 2 diabetes में व्यक्ति के शरीर में ब्लड शुगर इतना ज्यादा हो जाता है कि उसे कंट्रोल कर पाना मुश्किल लगने लगता है।
इन दोनों तरह की शुगर की बीमारी के कारण अलग-अलग है और इन्हें कंट्रोल करने के तरीके भी अलग होते हैं।
Type 1 diabetes में शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है जो कि आनुवांशिक कारणों के कारण होता है यानी अगर आपके घर में किसी परिवार वाले specially अगर आपके माता-पिता को डायबिटीज है तो आपको टाइप वन डायबिटीज होने की Possibility बहुत ज्यादा रहती है।
वही अनुवांशिक कारणों के अलावा रोटावायरस भी type 1 diabetes का एक कारण हो सकता है यह डायबिटीज उम्र के किसी भी पड़ाव में हो सकती है बच्चों में भी जन्म से टाइप वन डायबिटीज देखी जा सकती है।
Type 2 Diabetes में शरीर में इंसुलिन बनना पूरी तरह से बंद हो जाता है यह बीमारी मुख्य रूप से 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में पाई जाती है इसके लिए गलत लाइफस्टाइल, खराब खान-पान और हाइपरटेंशन को जिम्मेदार माना जाता है।
टाइप 1 डायबिटीज को ठीक करने के लिए इंसुलिन शरीर में इंजेक्शन या पंप के द्वारा पहुंचाया जाता है जबकि टाइप टू डायबिटीज दवाइयां और लाइफस्टाइल में बदलाव करके ठीक किया जा सकता है।
डायबिटीज के तीसरे टाइप को जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है कई महिलाओं में यह प्रॉब्लम प्रेगनेंसी के दौरान होती है और प्रेगनेंसी के बाद ठीक भी हो जाती है।
45 साल की उम्र के बाद डायबिटीज का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है विशेष कर जिन लोगों के घरों में आनुवांशिक रूप से इसके मरीज होते है उन्हें बहुत सावधान रहने की जरूरत है 45 साल की उम्र के बाद अपना विशेष ध्यान रखें, ताकि आप अपनी बॉडी में blood sugar को कंट्रोल में रख सके।
इसके अलावा मोटापे के शिकार लोगों को डायबिटीज बहुत जल्दी होती है तो उन्हें भी खुद का वजन कंट्रोल करने की जरूरत है ताकि वजन के साथ शुगर लेवल भी नियंत्रित किया जा सके।
जिन लोगों में हाइपरटेंशन, हाई ब्लड प्रेशर और बहुत ज्यादा मात्रा में कोलेस्ट्रॉल होता है उन्हें डायबीटीज होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है तो ऐसे लोगों को भी सावधानी रखने की जरूरत है।
तो दोस्तों आशा करते हैं आपको समझ आ गया होगा कि शुगर और डायबिटीज में क्या अंतर होता है और डायबिटीज क्यों होती है इसके क्या कारण होते हैं किस तरह से ठीक की जा सकती है ऐसी ही जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहे।