Brain transplant होना क्यों संभव नहीं है?

दोस्तों अपने काफी सारे ट्रांसप्लांट के बारे में सुना होगा और आपके आसपास भी देखा होगा! ज्यादातर आपने आंखों, दिल, किडनी और बाकी अंगों के ट्रांसप्लांट के बारे में सुना होगा।
जिस तरह एक व्यक्ति के शरीर से दूसरे व्यक्ति के शरीर में दिल, किडनी, फेफड़े,आंख जैसे अंगों का ट्रांसप्लांट किया जाता है, इस तरह क्या Brain transplant होना संभव है?

Brain transplant होना क्यों संभव नहीं है?
Brain transplant होना क्यों संभव नहीं है?

हम आगे बात करेंगे क्या यह संभव है? या नहीं है?, क्या विज्ञान के विकास के बाद वैज्ञानिकों ने इस पर experiment किए हैं?
बहरहाल इसके बारे में बहुत सारे आर्टिकल्स टेस्ट और रिसर्च हुई है। उनके क्या रिजल्ट आए हैं?

दोस्तों आज हम इस ब्लॉग पोस्ट पर जानेंगे की, ऐसे कौन से जानवर है जिन पर यह रिसर्च की गई है? क्या यह successful रहा? अगर नहीं, तो क्या बाधाएं आई? आईए जानते हैं –

ट्रांसप्लांट का क्या मतलब है?

Transplant (प्रत्यारोपण) का शाब्दिक अर्थ प्रत्यारोपण है यानी की किसी व्यक्ति के शरीर का कोई भी अंग जैसे आंख दिल फेफड़ा किडनी किसी जरूरतमंद दूसरे व्यक्ति के शरीर को दे देना।

Brain transplant क्या है?

जिस तरह किसी व्यक्ति के शरीर का कोई भी अंग किसी दूसरे जरूरतमंद व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है इस तरह मस्तिष्क (जो शरीर का सबसे महत्वपूर्ण कार्य करने वाला अंग है) कभी ट्रांसप्लांट होता है।

ब्रेन यानी मस्तिष्क किसी भी शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है क्योंकि यह है हमारे शरीर के बाकी अंगों जैसे हाथ पैर आदि को समन्वित नियंत्रित करता है।

हमारे मस्तिष्क में ऐसी नसे होती है जो हमें किसी भी काम को करने के लिए एक तरह से आर्डर देती हैं उदाहरण के लिए:

अगर हमारी आंख पर पट्टी बंधी हो और हमारा हाथ किसी गर्म चीज को छू ले तो तब भी हम तुरंत हाथ हटा लेते हैं यह तुरंत हाथ हटाने के लिए हमें मस्तिष्क की नसें संकेत देती है।

इसलिए मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।

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ब्रेन ट्रांसप्लांट के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिकों द्वारा रिसर्च:

ब्रेन ट्रांसप्लांट के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने कई जानवरों और मनुष्य पर भी रिसर्च की है जिसकी जानकारी नीचे बताई गई है:

1900 के दौरान कुत्ते का ब्रेन ट्रांसप्लांट:

एक ब्रिटिश वैज्ञानिक ने एक अलग नस्ल के कुत्ते के सर को दूसरे नस्ल के कुत्ते के सर से जोड़ दिया

जब ब्रिटिश वैज्ञानिक ने अपनी टीम के साथ एक अलग नस्ल के कुत्ते का कर दूसरे नस्ल के कुत्ते के सर से जोड़ा तो उन्हें इस बात की आशा थी कि यह कुत्ता जल्द ही होश में आ जाएगा।

परंतु उनका यह परीक्षण सफल न हो सका और इस ब्रेन ट्रांसप्लांट के एक सप्ताह के बाद भी वह कुत्ता होश में नहीं आया और अंतत उस कुत्ते की मौत हो गई।

Monkey brain transplant: बंदर के ऊपर रिसर्च (1960)

1960 के दौरान इसी परीक्षण को आगे बढ़ते हुए वैज्ञानिकों ने एक बार फिर ब्रेन ट्रांसप्लांट करने का फैसला किया।

परंतु इस बार कुत्ते की जगह एक बंदर का कर दूसरे बंदर के धड़ से जोड़ा गया जहां उन्हें कुछ हद तक सफलता मिली कि उसे बंदर को परीक्षण के बाद होश भी आ गया।

लेकिन अब की बार उस बंदर का शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर रहा था जिसके चलते वह एक अधमरा शरीर था। इसके बाद लगभग 9 दिनों के बाद उसे बंदर की मौत हो गई।

American neurosurgeon Dr j Robert द्वारा एक monkey से दूसरे monkey में ब्रेन ट्रांसप्लांट:- 1970

सन 1970 में एक अमेरिकन न्यूरोसर्जन डॉक्टर रॉबर्ट व्हाइट ने एक बंदर का सर दूसरे बंदर के धड़ से जोड़ने का प्रयास किया।

इसके बाद उसे बंदर का सेंस का टेस्ट,स्मेल, हियरिंग और फैसियल मसल्स को हिला पाना संभव हो गया था और यह सभी विशेषताएं पुनः प्राप्त भी हो गई थी।

लेकिन दुर्भाग्य वर्ष यह ब्रेन ट्रांसप्लांट 8 दिनों तक के लिए सक्सेसफुल रहा और 8 दिनों के बाद वह बंदर के लिए खतरनाक साबित हुआ जिससे वह मर गया।

चूहों पर शोध – New York City’s Mount Sinai medical College’ doctor experimented on a RAT: 1982

उपरोक्त सभी परीक्षण करने के बाद एक बार फिर से न्यूयॉर्क सिटी के माउंट सीने मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर ने एक चूहा का मस्तिष्क ट्रांसप्लांट करना शुरू किया।

यह ट्रांसप्लांट उनकी टीम के साथ काफी घंटे तक चलता रहा और फिर कई घंटे के बेतहाशा कोशिशें के बाद चूहे का ब्रेन ट्रांसप्लांट सक्सेसफुल रहा।

वह चूहा सर्जरी के बाद होश में आने के साथ-साथ शरीर के बाकी अंगूर को पूरी तरीके से चलाने में समर्थ रहा।

फिर इस सफलता के बाद डॉक्टर ने अपनी कोशिश जारी रखी।

पिट्सबर्ग मेडिकल सेंट्रल सर्जन की टीम द्वारा दुनिया का सबसे पहले human ब्रेन ट्रांसप्लांट: 6th June, 1998

दुनिया के सबसे पहले human brain transplant करने वाले पिट्सबर्ग मेडिकल सेंट्रल सर्जन की टीम ने सबसे पहले एक ब्रेन सेल का ट्रांसप्लांट किया क्योंकि डॉक्टर बहुत बड़ा कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते थे।

इसीलिए उन्होंने पूरे दिमाग को ट्रांसप्लांट करने के बजाय दिमाग के केवल एक छोटे से हिस्से को बदलना जरूरी और सही समझा।

बहरहाल यह ट्रांसप्लांट तो ठीक हो गया, लेकिन इस सर्जरी के दौरान डॉक्टर की किसी गलती के कारण एक 62 साल की महिला के दोनों पैर क्षतिग्रस्त हो गए।

अंत में यह कहा जा सकता है की जब जानवरों का brain transplant परीक्षण सफल नहीं हो सका बल्कि 1998 के मनुष्य के ब्रेन ट्रांसप्लांट होना भी असंभव ही रहा तो यह उम्मीद करना बेकार होगा की मानव का ब्रेन ट्रांसप्लांट हाल में संभव हो जाए।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं की यह कभी भी संभव नहीं होगा। बहुत से वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार भविष्य में मनुष्य मस्तिष्क बदलाव होने की बहुत अधिक संभावनाएं हैं इसके लिए वह नई-नई टेक्नोलॉजी का विकास कर रहे हैं जिससे यह होना संभव हो जाए।

Brain transplant होना क्यों संभव नहीं है?

फिलहाल आज के समय में ब्रेन ट्रांसप्लांट होना संभव नहीं है इसके निम्नलिखित संभावित कारण हो सकते हैं:

मस्तिष्क को रीड की हड्डी से अलग करने के कारण Complete paralysis हो सकता है:

जब ब्रेन ट्रांसप्लांट करने की शुरुआत की जाती है तो रीड की हड्डी से मस्तिष्क को अलग किया जाता है जिसमें रीड की हड्डी पर डिसेक्शन दिया जाता है ताकि हमारा मस्तिष्क शरीर से अलग हो जाए।

लेकिन जब यह प्रक्रिया चलाई जाती है टू रीड की हड्डी में केवल एक कट लगने से पूरा शरीर पैरालाइज हो जाता है ऐसे में कहा जाता है ऐसे ब्रेन ट्रांसप्लांट का क्या फायदा जिससे पूरा शरीर पैरालाइज हो जाए।

Brain cell गैर पुनर्योजी:

जब कभी हमें चोट लगती है तो उसे जगह पर जख्म बन जाता है या उसे जगह की खाल हट जाती है और कुछ वक्त के बाद एक नई खाल आती है तो यह नहीं खल ना हमारे शरीर के कोशिकाओं की पुनर्जीवित विशेषता होती है।

हालांकि यह एक अलग कैस हैं की ब्रेन सेल जिसकी एक कमी यह है कि यह पुनर्जीवित नहीं हो सकता है जिसके कारण दूसरी कोई कोशिका जन्म नहीं लगी जिससे वह घाव भर सके इसीलिए यह शरीर के बाकी अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

Organ donor का न मिलना:

किसी भी तरह के अंग बदलाव करने से पहले यह जरूरी है कि जरूरतमंद व्यक्ति को ब्रायन देने वाला डॉनर मिले। आज हमारे देश की स्थिति है कि लगभग 53000 लोग अपने लिए किसी डॉनर का इंतजार कर रहे हैं।

और इससे भी बड़ी बात यह है कि यह लोग उनका इंतजार करते-करते दुनिया को अलविदा कह बैठते हैं। तो आजकल यह बहुत बड़ी समस्या है कि कहीं से अंग देने वाला व्यक्ति मिल जाए।

Donor का रोगी के साथ mismatch होना:

जब भी ट्रांसप्लांट किया जाता है उसके लिए जरूरी है कि donor का रोगी व्यक्ति के अंगों के साथ मैच होने के लिए टेस्ट किया जाए जिसके लिए उन्हें बहुत सारे परीक्षणों से गुजरना पड़ता है।

अगर यह व्यक्ति रोगी के साथ मेल खा जाता है तो उसे एक donor सेलेक्ट कर लिया जाता है वरना यह प्रक्रिया जारी रहती है की कोई दाता दोबारा से ढूंढा जाए।

इसके लिए आवश्यकतानुसार Tecnology का विकास नहीं किया गया

साल 2013 में कई लोगों ने एक surgeon से सवाल किया कि जिस तरह शरीर से फेफड़ों का बदलना किया जा सकता है तो उसी तरह मस्तिष्क का क्यों नहीं।?

इस सवाल के जवाब में सर्जन ने कहा की यह अभी तो संभव नहीं है लेकिन भविष्य में बहुत जल्द यह संभव होने वाला है। फिलहाल इसको करने के लिए हमारे पास टेक्नोलॉजी का अभाव है। मस्तिष्क की रीड की हड्डी में उन बारीक नसों को जोड़ना बहुत ही कठिन काम है।

इसीलिए उन्होंने कहा कि रीड की हड्डी की चोट इतनी नुकसानदायक होती है कि अगर मस्तिष्क ट्रांसप्लांट करने में हम सफल भी हो जाए तो रीड की हड्डी में लगने वाली चोट के कारण इंसान जिंदा नहीं बच पाता है,

क्योंकि दिमाग को शरीर के बाकी अंगों के साथ संपर्क बनाने के लिए रीड की हड्डी बहुत ही अहम भूमिका निभाती है और तो और इतने बड़े ऑपरेशन को झेलने के लिए कोई भी बॉडी इतनी आसानी से तैयार नहीं होती है।

हालांकि टेक्नोलॉजी बहुत आगे पहुंच चुकी है लेकिन फिर भी यह एक बहुत ही अहम और नाजुक मुद्दा होता है जिसे करने के लिए बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है जो इतना आसान नहीं है।

समय लेने वाली प्रक्रिया में एक सर्जरी में लाखों लोगों की आवश्यकता होती है:

यह प्रक्रिया एक बहुत ही लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है जिसके लिए डॉक्टर वैज्ञानिकों को उसे देश के की सरकार से इजाजत लेनी होती है जिसके लिए उन्हें बहुत से पापड़ बेलने पड़ते हैं,

इसके बावजूद भी सरकार इजाजत नहीं देती है क्योंकि यह एक बहुत ही जोखिम भरा काम है जिससे किसी भी व्यक्ति की जान जा सकती है साथ ही किसी भी ब्रेन ट्रांसप्लांट को करने के लिए लगभग 13 मिलियन डॉलर की जरूरत होती है।

उपरोक्त रूकावटों के बावजूद दुनिया भर के वैज्ञानिक और सर्जन दिमागी शोध में लगे हुए हैं उनका कहना है कि हाल फिलहाल में इसकी उम्मीद रखना बिल्कुल बेकार बात है।

लेकिन हां भविष्य में नई वैज्ञानिक टेक्नोलॉजी के विकसित होने के साथ-साथ Brain transplant होना की संभावनाएं अधिक है एक अमेरिकन सजन का कहना है कि सन 2030 तक एक सफल ब्रेन ट्रांसप्लांट करने की जी तोड़ कोशिश है।

निष्कर्ष

अंत में हम कह सकते हैं कि brain transplant होने से पहले जानवरों पर परीक्षण किया जाता है जिसके लिए डॉक्टर को सरकार से इजाजत लेनी होती है जो की एक बहुत ही लंबा और महंगा प्रोसेस होता है जिसके लिए डॉक्टर जी तोड़ मेहनत करते हैं।

इसी तरह दुनिया भर के कई वैज्ञानिकों ने जानवरों पर इसके बारे में कदम उठाए हैं जिनमें से कुछ में वह सफल हुए और कुछ में नहीं। लेकिन इस सब के बावजूद दुनिया भर के वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य का brain transplant भविष्य में जरूर होगा। जिसके लिए हमें कई सालों का इंतजार करना होगा।

Saniya Qureshi is a Health and Beauty writer, senior consultant and health educator with over 5 years of experience.

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